- राजीव रंजन श्रीवास्तव
कर्नाटक विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की धमाकेदार जीत ने ये ऐलान कर दिया है कि राज्य में नफरत की दुकान बंद हो गई है और मोहब्बत की दुकान का फीता जनता ने काट दिया है। कर्नाटक के नतीजे बतला रहे हैं कि देश में अब सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और विभाजनकारी राजनीति से जनता थक गई है। वह बुनियादी मुद्दों की राजनीति पर यकीन करना चाहती है। भाजपा के शासन में कर्नाटक में शुरु हुआ हिजाब और नमाज विवाद, चुनाव प्रचार में बजरंगबली की जय बोलने और केरला स्टोरी फिल्म के प्रचार तक आ गया। खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चुनावों में सांप्रदायिक नजरिए को बढ़ावा दिया। बजरंग दल जैसे अतिवादी और हिंसा पर यकीन रखने वाले संगठन पर प्रतिबंध की बात को श्री मोदी ने जानबूझकर बजरंग बली के अपमान से जोड़कर बताया। जनता को यह बताने की कोशिश उन्होंने की कि कांग्रेस ने पहले राम का अपमान किया, अब बजरंग बली का कर रहे हैं। प्रधानमंत्री ने बार-बार कर्नाटक आकर चुनाव प्रचार किया, रोड शो और रैलियां कीं और हर बार उनके निशाने पर कांग्रेस रही। उन्होंने गांधी परिवार को शाही परिवार बताया, उन्हें देशविरोधी साबित करने की कोशिश की। अपनी आलोचना को 91 गालियों के रूप में प्रचारित किया।
कुल मिलाकर प्रधानमंत्री मोदी कांग्रेस के लिए नकारात्मकता फैलाते हुए चुनाव प्रचार करते रहे। उन्हें यकीन था कि गुजरात की तरह कर्नाटक की जनता भी उनकी बात सुनेगी। जब मतदान के दिन आते-आते उन्हें ये अहसास हुआ कि कांग्रेस विरोधी माहौल नहीं बन पा रहा है, तो उन्होंने कर्नाटक के लोगों के नाम खुला खत लिखा और कर्नाटक के विकास को देश का विकास बता दिय़ा। लेकिन श्री मोदी का एक भी पैंतरा काम नहीं आया। कर्नाटक की जनता ने एक बार फिर भाजपा को नकार दिया।
गौरतलब है कि पिछले 25 सालों में भाजपा को कभी भी कर्नाटक में बहुमत नहीं मिला। 2008 में 110 सीटें मिली थीं, तो निर्दलीय विधायकों को पाले में लेकर श्री येदियुरप्पा ने भाजपा सरकार बनाई थी। इसके बाद 2019 में भाजपा ने फिर से आपरेशन लोटस के जरिए ही सरकार बनाई, जबकि इससे पहले 2018 के चुनाव में कांग्रेस और जेडीएस की सरकार बनी थी। भाजपा ने इस दक्षिण राज्य में दो बार सरकार तो बनाई, लेकिन बहुमत कभी हासिल नहीं हुआ और अब 2023 में एक बार फिर कर्नाटक की जनता ने भाजपा को विपक्ष में बैठने की जगह दी है। 2018 में भाजपा को 104 सीटें मिली थीं, लेकिन इस बार तो आंकड़ा सौ तक भी नहीं पहुंच पाया।
श्री मोदी की जो अजेय छवि भाजपा ने बना रखी है, उसे कर्नाटक की जनता ने ध्वस्त कर दिया है। 2023 के नतीजे केवल कांग्रेस की जीत नहीं हैं, ये राहुल गांधी के भारतीय राजनीति में बढ़ते कद के गवाह हैं। राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के दौरान सबसे अधिक 21 दिन इस राज्य में गुजारे और करीब 5 सौ किमी की यात्रा यहां की। इस यात्रा में ही उन्होंने ऐलान कर दिया था कि वे मोहब्बत की दुकान खोलने निकले हैं। कर्नाटक के कोलार में 2019 में उन्होंने मोदी उपनाम को लेकर जो टिप्पणी की थी, उसे भाजपा विधायक पूर्णेश मोदी ने मानहानि माना और राहुल गांधी पर मुकदमा किया। सूरत की अदालत से उन्हें दो साल की सजा हुई, उनकी संसद सदस्यता भी चली गई। भाजपा इतने पर भी चुप नहीं बैठी और राहुल गांधी पर पिछड़ों के अपमान का आरोप लगाया। भारत जोड़ो यात्रा से राहुल गांधी की जो विराट, उदार छवि जनता के बीच बनी, उसे ध्वस्त करने की हर संभव कोशिश भाजपा ने की। लेकिन राहुल गांधी ने कर्नाटक से पिछड़ों के मुद्दों पर भाजपा को बड़े सलीके से घेर लिया।
उन्होंने सवाल उठाया भारत सरकार में मात्र 7 फीसदी सचिव दलित, आदिवासी या ओबीसी क्यों हैं? क्या भारत में इन वर्गों की आबादी बस 7 फीसदी है? अगर हमें देश में सबको भागीदारी देनी है, तो किस जाति की कितनी आबादी है, ये पता लगाना पड़ेगा। प्रधानमंत्री जातीय जनगणना के आंकड़े सार्वजानिक क्यों नहीं कर रहे हैं? उनके सवालों पर भाजपा ने घुटने टेक दिए। 'जितनी आबादी-उतना हक़ का नारा देकर राहुल गांधी ने एक लंबी लकीर खींच दी और कांग्रेस की सामाजिक न्याय की ऐतिहासिक विरासत को फिर से मुख्यधारा में ले आए। हमारा संविधान तो सामाजिक न्याय का सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज है ही, आजादी के तुरंत बाद दलितों और आदिवासियों के लिए राजनीति, शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण देकर कांग्रेस ने भारत में सामाजिक न्याय की अवधारणा को मजबूत किया था। फिर पिछड़े वर्गों को शिक्षा में आरक्षण देने का काम भी कांग्रेस सरकार ने ही किया था, लेकिन इसे अपनी उपलब्धि के तौर पर कांग्रेस प्रचारित-प्रसारित नहीं कर पाई, बल्कि क्षेत्रीय दल या गैरकांग्रेसवाद में सामाजिक न्याय की आवाज बुलंद होती रही। लेकिन पिछले समय में हुए रायपुर अधिवेशन में संगठन और राजनीति, दोनों ही मोर्चों पर सामाजिक न्याय को कांग्रेस ने अपनी वैचारिक मशाल बनाया और अब उसी की रौशनी कर्नाटक की जीत में दिखाई दे रही है। यही रौशनी अब 2024 तक पूरे देश में बिखरेगी, यह नजर आ रहा है।
कर्नाटक के नतीजों का असर यानी कांग्रेस की बड़ी जीत केवल एक राज्य तक सीमित नहीं रहने वाली है। अगले पांच-छह महीनों में राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में चुनाव होने हैं। जिनमें से छत्तीसगढ़ में तो कांग्रेस पहले से मजबूत स्थिति में है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की क्षमताओं पर कांग्रेस आलाकमान का यकीन है। मध्यप्रदेश में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह दोनों अनुभवी नेताओं के मार्गदर्शन में कांग्रेस खुद को मजबूत कर रही है। ज्योतिरादित्य सिंधिया से मिले धोखे के नुकसान की भरपाई कांग्रेस इस बार कर लेगी, इसके आसार हैं। राजस्थान में सचिन पायलट के अलग राग के बावजूद अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस मजबूत दिख रही है। तेलंगाना में प्रियंका गांधी ने कर्नाटक के तुरंत बाद प्रचार शुरू कर दिया है। प्रियंका गांधी की मेहनत ने हिमाचल प्रदेश के बाद, कर्नाटक में भी रंग दिखाया है। इन विधानसभा चुनावों में एक बार फिर कांग्रेस के आगे भाजपा और मोदीजी की साख दांव पर रहेगी और इसके ठीक बाद अगले आम चुनाव की उल्टी गिनती शुरु हो जाएगी। जिसमें भाजपा हैट्रिक लगाने का दावा तो कर रही है, लेकिन अभी देश का माहौल भाजपा के खुले खेल के पक्ष में नहीं है।
नीतीश कुमार और शरद पवार जैसे दिग्गज नेता अब विपक्षी एकजुटता की मुहिम में जोर-शोर से लग गए हैं। कर्नाटक की जीत के बाद कांग्रेस के नेतृत्व में ही यह मोर्चा बनेगा, यह तय दिख रहा है। अगर यूपीए 3 अस्तित्व में आता है, तो फिर भाजपा के लिए जीत मुश्किल होगी। कर्नाटक के जनादेश ने मौजूदा राजनीति के कई मिथकों को तोड़ा है। जनता ने रोजगार और महंगाई जैसे बुनियादी मुद्दों के ऊपर सांप्रदायिक राजनीति में यकीन नहीं दिखाया है। मोदीजी को उसने अजेय नेता नहीं माना है। डबल इंजन की सरकार जैसे जुमलों को जनता ने नकार दिया है। इन चुनावों में कांग्रेस के 40 प्रतिशत कमीशन वाले आरोप पर भाजपा बुरी तरह घिरी। कांग्रेस की 5 गारंटियों ने जनता के दिल में जगह बनाई और भाजपा की नकारात्मक राजनीति की अपेक्षा कांग्रेस की सुधारवादी राजनीति को जनता ने स्वीकार किया है। अब अगले सभी चुनावों में कांग्रेस को इसी योजनाबद्ध तरीके और उत्साह से लड़ने की जरूरत है, तभी जीत का सिलसिला कायम रह सकेगा।